स्वामी रामकृष्ण परमहंस के 11 अनमोल वचन(5 Precious Sayings,sms,messages and quotes of Swami Rama Tirtha).
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स्वामी रामकृष्ण परमहंस के 11 अनमोल वचन(Swami Ramkrishna Paramhansa Sayings) |
जीवन परिचय (Swami Ramkrishna Paramhansa Biography)
मानवीय मूल्यों के पोषक संत रामकृष्ण परमहंस का जन्म १८ फ़रवरी १८३६ को बंगाल प्रांत स्थित कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर था। पिताजी के नाम खुदिराम और माताजी के नाम चन्द्रमणीदेवी था।उनके भक्तो के अनुसार रामकृष्ण के माता पिता को उनके जन्म से पहले ही अलौकिक घटनाओ और दृश्यों का अनुभव हुआ था । गया में उनके पिता खुदीराम ने एक स्वप्न देखा था जिसमे उन्होंने देखा की भगवान गदाधर ( विष्णु के अवतार ) ने उन्हें कहा की वे उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे । उनकी माता चंद्रमणि देवी को भी ऐसा एक अनुभव हुआ था उन्होंने शिव मंदिर में अपने गर्भ में रोशनी प्रवेश करते हुए देखा ।
इनकी बालसुलभ सरलता और मंत्रमुग्ध मुस्कान से हर कोई सम्मोहित हो जाता था।
परिवार
सात वर्ष की अल्पायु में ही गदाधर के सिर से पिता का साया उठ गया। ऐसी विपरीत परिस्थिति में पूरे परिवार का भरण-पोषण कठिन होता चला गया। आर्थिक कठिनाइयां आईं। बालक गदाधर का साहस कम नहीं हुआ। इनके बडे भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय कलकत्ता (कोलकाता) में एक पाठशाला के संचालक थे। वे गदाधर को अपने साथ कोलकाता ले गए। रामकृष्ण का अन्तर्मन अत्यंत निश्छल, सहज और विनयशील था। संकीर्णताओं से वह बहुत दूर थे। अपने कार्यो में लगे रहते थे।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस के 11 अनमोल वचन(Swami Ramkrishna Paramhansa Sayings)
जब हवा चलने लगी तो पंखा छोड़ देना चाहिए पर जब ईश्वर की कृपा दृष्टि होने लगे तो प्रार्थना तपस्या नहीँ छोड़नी चाहिए |
यदि तुम ईश्वर की दी हुई शक्तियोँ का सदुपयोग नहीँ करोगी तो वह अधिक नहीँ देगा इसलिए प्रयत्न आवश्यक है ईश-कृपा के योग्य बनाने के लिए भी पुरुषार्थ चाहिए |
राजहंस दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है दूसरे पक्षी ऐसा नहीँ कर सकते इसी प्रकार साधारण पुरुष माया के जाल मेँ फंसकर परमात्मा को नहीँ देख सकते केवल परमहंस ही माया को छोड़कर परमात्मा के दर्शन पाकर देवी सुख का अनुभव करते हैँ |
कर्म के लिए भक्ति का आधार होना आवश्यक है |
पानी और उसका बुलबुला एक ही चीज है उसी प्रकार जीवात्मा और परमात्मा एक ही चीज है अंतर केवल यह है कि एक परीमीत है दूसरा अनंत है एक परतंत्र है दूसरा स्वतंत्र है |
मैले शीशे मेँ सूर्य की किरणो का प्रतिबिंब नहीँ पड़ता उसी प्रकार जिन का अंत:करण मलिन और अपवित्र हैँ उन के हृदय मेँ ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीँ पड़ सकता |
जब तक इच्छा लेशमात्र भी विद्यमान है जब तक ईश्वर के दर्शन नहीँ हो सकते अतएव अपनी छोटी छोटी इच्छाओं और समयक विचार विवेक द्वारा बड़ी बड़ी इच्छाओं का त्याग कर दो |
एकमात्र ईश्वर ही विश्व का पथ प्रदर्शक और गुरु है |
जिसने आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त कर लिया उस पर काम और लोभ का विष नहीँ चढ़ता |
क्या तुंहेँ मालूम है कि सात्विक प्रकृति का मनुष्य केसे ध्यान करता है वह आधी रात को अपने बिस्तर मेँ ध्यान करता है जिससे लोग उसे देख ना सके |
author : Pratibha Mod ~ http://besthindiblogofindia.blogspot.in/