जगदगुरु शंकराचार्य के 11 अनमोल वचन(11 Sayings Of Shankaracharya) वचन आपके जीवन को बदल कर रख देंगे. (Top 10 Best sayings of Shankaracharya in hindi that will change your life perspective.)
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जगदगुरु शंकराचार्य के 11 अनमोल वचन(11 Sayings Of Shankaracharya) |
जीवन परिचय
आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता थे। उनके विचारोपदेश आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं जिसके अनुसार परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों में रहता है। स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार माना जाता है। इन्होंने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा। वेदों में लिखे ज्ञान को एकमात्र ईश्वर को संबोधित समझा और उसका प्रचार तथा वार्ता पूरे भारत में की। उस समय वेदों की समझ के बारे में मतभेद होने पर उत्पन्न जैन और बौद्ध मतों को शास्त्रार्थों द्वारा खण्डित किया और भारत में चार कोनों पर चार मठों की स्थापना की।
भारतीय संस्कृति के विकास में आद्य शंकराचार्य का विशेष योगदान रहा है। आचार्य शंकर का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी तिथि ई. पू. ५०९ को तथा मोक्ष ई. पू. सन् ४७७ स्वीकार किया जाता है। शंकर दिग्विजय, शंकरविजयविलास, शंकरजय आदि ग्रन्थों में उनके जीवन से सम्बन्धित तथ्य उद्घाटित होते हैं। दक्षिण भारत के केरल राज्य (तत्कालीन मालाबारप्रांत) में आद्य शंकराचार्य जी का जन्म हुआ था। उनके पिता शिव गुरु तैत्तिरीय शाखा के यजुर्वेदी ब्राह्मण थे। भारतीय प्राच्य परम्परा में आद्यशंकराचार्य को शिव का अवतार स्वीकार किया जाता है। कुछ उनके जीवन के चमत्कारिक तथ्य सामने आते हैं, जिससे प्रतीत होता है कि वास्तव में आद्य शंकराचार्य शिव के अवतार थे। आठ वर्ष की अवस्था में गोविन्दपाद के शिष्यत्व को ग्रहण कर संन्यासी हो जाना, पुन: वाराणसी से होते हुए बद्रिकाश्रम तक की पैदल यात्रा करना, सोलह वर्ष की अवस्था में बद्रीकाश्रम पहुंच कर ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखना, सम्पूर्ण भारत वर्ष में भ्रमण कर अद्वैत वेदान्त का प्रचार करना, दरभंगा में जाकर मण्डन मिश्र से शास्त्रार्थ कर वेदान्त की दीक्षा देना तथा मण्डन मिश्र को संन्यास धारण कराना, भारतवर्ष में प्रचलित तत्कालीन कुरीतियों को दूर कर समभावदर्शी धर्म की स्थापना करना - इत्यादि कार्य इनके महत्व को और बढ़ा देता है। चार धार्मिक मठों में दक्षिण के शृंगेरी शंकराचार्यपीठ, पूर्व (ओडिशा) जगन्नाथपुरी में गोवर्धनपीठ, पश्चिम द्वारिका में शारदामठ तथा बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्पीठ भारत की एकात्मकता को आज भी दिग्दर्शित कर रहा है। कुछ लोग शृंगेरी को शारदापीठ तथा गुजरात के द्वारिका में मठ को काली मठ कहते र्है। उक्त सभी कार्य को सम्पादित कर 32वर्ष की आयु में मोक्ष प्राप्त की।
जगदगुरु शंकराचार्य के 11 अनमोल वचन(11 Sayings Of Shankaracharya)
ज्ञात अज्ञात पाप ही अंतकरण की मलिनता होता है | जब तक अंतकरण मल रहित पाप रहित नहीँ होता तब तक दिव्य दृष्टि का उदय नहीँ होता है |
न यहाँ कुछ है, न वहाँ कुछ है | जहाँ जहाँ जाता हूँ न वहाँ कुछ है | विचार करके देखता हूँ तो न जगत ही कुछ है |अपनी आत्मा के ज्ञान के परे कुछ भी नहीँ है |
आत्मा स्वरुप मेँ लीन चित्त बाह्य विषयो की चिंता नहीँ करता जैसे कि दूध मेँ से निकला घी फिर दूध नहीँ बन सकता |
कर्म चित्त की शुद्धि के लिए ही है, तत्व दृष्टि के लिए नहीँ | सिद्धि तो विचार से ही होती है | करोड़ो कर्मोँ से कुछ भी नहीँ हो सकता |
प्राणियोँ के लिए चिंता ही ज्वर है |
ज्ञान की अग्नि सुलगते ही कर्म भस्म हो जाते हैँ |
यथार्थ ज्ञान ही मुक्ति का कारण है और हमेँ यथार्थ ज्ञान की प्राप्ति परमार्थिक कर्मोँ से ही होती है
तत्व वस्तु की प्राप्ति का मुख्य उपाय ध्यान है | सबसे उत्तम तीर्थ अपना मन है जो विशेष रुप से शुद्ध किया हुआ हो |
जिसे सब तरह से संतोष है वही धनवान है |
नरक क्या है परवशता |
पुरुषार्थ हीन व्यक्ति जीते जी ही मरा हुआ है |
author : Pratibha Mod ~ http://besthindiblogofindia.blogspot.in/